Tuesday, January 2, 2018

शहरवाली समाज का वैभव एवं श्री पूज्यों की परंपरा


शहरवाली समाज का वैभव एवं श्री पूज्यों की परंपरा

मुर्शिदाबाद अपनी स्थापना के समय से ही भारत के समृद्धतम स्थलों में से रहा है. मुग़ल काल के उत्तरार्ध में वसा यह शहर अपने वैभव, रईसी, कला और नज़ाकत के लिए प्रसिद्द था. अंग्रेज वाइसराय वारेन हेस्टिंग्स ने लिखा है की मुर्शिदाबाद का प्रति व्यक्ति आय उस समय के लन्दन से ६ गुना था. जगत सेठ, अमीचंद से प्रारम्भ कर गोलेच्छा, दुगड़, दुधोडिया, नाहर, नवलखा, कोठारी, सिंघी, श्रीमाल आदि जैन परिवार अपनी समृद्धि और रईसी के लिए भारत भर में जाने जाते थे. दिल्ली के मुग़ल बादशाह और ईस्ट इण्डिया कंपनी भी जगत सेठ से क़र्ज़ लिया करते थे. उस समय वहां के जैन परिवारों का नवाबों और अंग्रेजों दोनों से ही घनिष्ठ संपर्क था. शासक परिवारों से संपर्क के कारण उनका दबदबा भी पुरे भारत में था.

अजीमगंज में गोलेछा परिवार निर्मित रत्नों की प्रतिमा 


वहां के जैनों में रईसी थी पर अय्यासी नहीं. इतनी समृद्धि और शक्ति के बाबजूद वहां के लोगों की धार्मिक आस्था अटूट थी. अजीमगंज जियागंज के १४ विशाल जिनमंदिर उसी आस्था के प्रतीक के रूप में आज भी विद्यमान हैं. काठगोला, रामबाग, कीरतबाग जैसे विशाल मंदिर व दादाबाड़ियाँ, महिमापुर में जगत सेठ द्वारा निर्मित श्री पार्श्वनाथ भगवान् का कसौटी का मंदिर, हरकचन्द गोलेच्छा परिवार द्वारा निर्मित छोटी शांतिनाथ जी के मंदिर की रत्नमय चौवीसी, दुगड़ परिवार द्वारा निर्मित श्री सम्भवनाथ स्वामी मंदिर के विशाल मूलनायक, कोठारी परिवार के श्री नेमिनाथ स्वामी के मंदिर की तीन सम्प्रतिकालीन प्रतिमा आदि सभी उस समय की धार्मिकता के जीवंत प्रमाण हैं.


श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर अजीमगंज 


इतना ही नहीं अजीमगंज-जियागंज के शहरवालियों ने पालीताना, सम्मेतशिखर, पावापुरी, क्षत्रियकुंड, चम्पापुरी, गुनायाजी आदि अनेक तीर्थों में भव्य जिनमंदिरों का निर्माण कराया है. जिन मंदिरों के साथ उपाश्रय (पौषाल), आयम्बिलशाला, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, धर्मशाला, म्युनिसिपल भवन, लाइब्रेरी  आदि अनेकों लोक कल्याणकरी परियोजनाओं का निर्माण एवं संचालन शहरवाली समाज के व्यक्तियों द्वारा कराया गया. इन सभी कामों में श्री पूज्यों और यतियों की प्रेरणा थी.


अजीमगंज में कसौटी के खम्बे की सुन्दर कलाकृति 


उस समय बंगाल जैसे दूरस्थ प्रान्त में साधु समाज का विचरण नगण्य था पर श्री पूज्यों एवं यतियों की परंपरा अत्यंत सुदृढ़ थी. श्री पूज्यों के प्रति वहां जबरदस्त श्रद्धा थी और उन्हें ही जैनाचार्य के रूप में माना जाता था. उसमे भी खरतर गच्छ की बीकानेर गद्दी के श्री पुज्यों का प्रभाव शहरवाली समाज में सर्वाधिक था. कोई भी धार्मिक कार्य उनकी आज्ञा के बिना नहीं होता था. अजीमगंज और जियागंज दोनों जगह एक एक यति बीकानेर के श्रीपुज्य जी के अधिकृत प्रतिनिधि के रूप में रहते थे जिन्हे आदेशी कहा जाता था. सभी दैनंदिन धार्मिक कार्य उनकी आज्ञा से ही होता था. 

श्रीपुज्य जी श्री जिन विजयेंद्र सूरी 

बीकानेर गद्दी के श्री पूज्य श्री जिन सौभाग्य सूरी सबसे पहले अजीमगंज पधारे थे. तबसे ऐसी परंपरा चली की बीकानेर में गद्दीनसीन होने के बाद का चातुर्मास अजीमगंज में ही होता था.अजीमगंज चातुर्मास करने के बाद ही कोई भी श्री पूज्य अन्यत्र चौमासा कर सकते थे.

खरतर गच्छ के अलावा लौंका गच्छ, विजय गच्छ, तपागच्छ के यतिलोग भी अजीमगंज-जीयागंज में सतत रहा करते थे. यहाँ पर इन यतियों ने अनेकों ग्रंथों की रचना कर ज्ञान जगत को समृद्ध किया है जिसकी सूचि भी बहुत लम्बी है. इसी यति परंपरा में दादागुरु पूजा के रचयिता रामलाल गणी उपनाम रामऋद्धि सार जी का जन्म जियागंज में हुआ था. 

आज यति परंपरा लुप्तप्राय है, ऐसी स्थिति में बीकानेर गद्दी के वर्त्तमान श्री पूज्य जी श्री जिन चंद्र सूरी जी के कर कमलों से अजीमगंज के ही श्री प्रतीक बैद की यति दीक्षा होने जा रही है. यति समाज के पूर्व गौरव को पुनर्जागृत करने के लिए फिर से शहरवाली समाज का ही एक युवा आगे आया है.

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Jyoti Kothari (Vardhaman Gems, Jaipur, representing Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry. He is a Non-resident Azimganjite.)






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