दादागुरु पूजा के रचयिता राम ऋद्धिसार जियागंज के थे
दादागुरुदेव की पूजा के रचयिता श्री रामलाल गणी उपनाम राम ऋद्धिसार का जन्म जियागंज एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। परिस्थितिवश वे बीकानेर पहुच गए एवं वहां पर यति दीक्षा ग्रहण की। अपनी प्रतिभा, लगन एवं सुदीर्घ अभ्यास से वे जैन अगमो के विशिष्ट अभ्यासी बने। उन्होंने अनेक जैन ग्रंथों की रचना कर जैन साहित्य विशेषकर खरतर गच्छीय साहित्य को समृद्ध किया।
दादागुरुदेव की पूजा एवं आरती उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। यह पूजा आज सभी दादाबाड़ीयों में गाई जाती है। वे ज्योतिष एवं आयुर्वेद के भी प्रकाण्ड विद्वान थे। उनके समय में राजस्थान में दो ही नाडी वैद्य थे उनमे से एक वे थे। उन्होंने इन विषयों पर अनेक ग्रंथों की भी रचना की है। वे न सिर्फ आयुर्वेद वल्कि होमियोपैथ, यूनानी एवं ऐलोपैथ के भी जानकार थे। वैद्य प्रदीप नाम के अपने पुस्तक में उन्होंने इन चारों प्रकार के चिकित्सा का विवरण दिया है। इसी पुस्तक की प्रस्तावना में उन्होंने अपना जीवन परिचय भी दिया है जिससे मुझे यह पता चला की उनका जन्म जियागंज, मुर्शिदाबाद में हुआ था।
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(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)
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